Thackeray family reunite uddhav and raj shiv sena mns new chapter maharashtra politics.

महाराष्ट्र की सियासत में शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बीच सुलह-समझौता की पठकथा लिखी जा रही है. राज ठाकरे ने एक पॉडकास्ट में उद्धव के साथ फिर से जुड़ने की इच्छा जताई तो उद्धव खेमा ने भी अपनी दोनों बांहें फैला दी. शिवसेना के मुखपत्र सामना संपादकीय में लिखा गया है कि राज और उद्धव एक साथ आने को तैयार हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि अगर ठाकरे बंधु आपसी गिले-शिकवे भुलाकर एक साथ आते हैं तो महाराष्ट्र की राजनीति कितनी बदल जाएगी?

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे रिश्ते में चचेरे भाई हैं. शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के बेटे उद्धव हैं तो भतीजे राज ठाकरे हैं. एक समय दोनों नेता एक ही मंच पर मराठी मानुस के लिए आवाज उठाते थे. हालांकि, जब राज ठाकरे को लगने लगा कि उद्धव को उनके ऊपर तरजीह दी जा रही है तो 2005 में शिवसेना से अलग हो गए. राज ने महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नाम से अपनी नई पार्टी बना ली. इसके बाद से उद्धव और राज ठाकरे अलग-अलग सियासत करते रहे, लेकिन 2024 के विधानसभा चुनाव के बाद महाराष्ट्र की सियासी परिस्थिति बदल गई है.

राज ठाकरे ने दिए उद्धव से दोस्ती के संकेत

राज ठाकरे ने अभिनेता और फिल्म निर्देशक महेश मांजरेकर को एक इंटरव्यू में उद्धव ठाकरे से फिर से दोस्ती के संकेत दिए हैं. राज ठाकरे ने कहा कि किसी भी बड़ी बात के लिए, हमारे विवाद और झगड़े बहुत छोटे और मामूली हैं. महाराष्ट्र बहुत बड़ा है. इस महाराष्ट्र के अस्तित्व के लिए, मराठी लोगों के अस्तित्व के लिए, ये विवाद और झगड़े बहुत महत्वहीन हैं. इस वजह से, मुझे नहीं लगता कि एक साथ आना और एक साथ रहना बहुत मुश्किल है.

साथ ही यह भी कहा कि यह सिर्फ मेरी इच्छा का मामला नहीं. हमें महाराष्ट्र की पूरी तस्वीर को देखना होगा. मुझे लगता है कि सभी पार्टियों के मराठी लोगों को एक साथ आकर एक पार्टी बनानी चाहिए.

उद्धव ठाकरे ने भी बढ़ाया दोस्ती का हाथ

मनसे प्रमुख राज ठाकरे के बयान पर उद्धव ठाकरे ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. उद्धव ने कहा, “मैं छोटे-मोटे झगड़ों को किनारे रखने को तैयार हूं. मैं सभी मराठी लोगों से महाराष्ट्र की भलाई के लिए एकजुट होने की अपील करता हूं. लेकिन एक तरफ उनका (बीजेपी का) समर्थन करना और बाद में समझौता करना और उनका विरोध करना, इससे काम नहीं चलेगा.”

उद्धव ने आगे कहा, “पहले ये तय कर लें कि आप महाराष्ट्र के रास्ते में आने वाले किसी भी व्यक्ति का स्वागत नहीं करेंगे और उनके जैसा व्यवहार नहीं करेंगे. मैंने मेरे स्तर पर मतभेदों को सुलझा लिया है, लेकिन पहले इस मामले पर निर्णय किया जाना चाहिए.” हालांकि, उद्धव ने साफ कर दिया है कि उनके साथ रहें या फिर बीजेपी के साथ.

राज ठाकरे और उद्धव क्या होंगे एक साथ

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के बाद से उद्धव ठाकरे की सियासत पर संकट मंडराने लगा है. शिवसेना की असली बनाम नकली की लड़ाई एकनाथ शिंदे जीतने में सफल रहे हैं, जिसके चलते उद्धव ठाकरे के लिए अपनी सियासत को बचाए रखने की चुनौती खड़ी हो गई है. इसी तरह से राज ठाकरे की राजनीति सियासी हाशिए पर खड़ी नजर आ रही है. राज ठाकरे के बेटे अमित ठाकरे अपनी सीट जीत नहीं सके, मनसे अपना खाता तक नहीं खोल सकी है. इस तरह बालासाहेब ठाकरे के सियासी वारिस माने जाने वाले उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे दोनों की राजनीति पर सवाल खड़े हो रहे हैं.

साल 2024 के चुनाव के बाद से ठाकरे बंधुओं के बीच 3 मुलाकातें हो चुकी हैं, जिसके बाद से दोनों भाई के एक होने के कयास लगाए जा रहे हैं. अब दोनों नेताओं ने एक दूसरे के साथ हाथ मिलाने के भी संकेत देने लगे हैं. शिवसेना यूबीटी के नेता संजय राउत ने कहा कि उद्धव और राज ठाकरे के बीच कोई औपचारिक गठबंधन नहीं है, बल्कि सिर्फ भावनात्मक बातचीत चल रही है.

शिवसेना यूबीटी के मुखपत्र सामना में इस विषय पर स्पष्ट बयान दिया गया है. सामना में लिखा गया है कि अगर राज और उद्धव ठाकरे साथ आना चाहते हैं, तो दूसरों को क्या दिक्कत है? सामना ने साफ लिखा है कि राज और उद्धव ठाकरे एक साथ आने को तैयार हैं. जहां कई लोग खुश हुए, वहीं कई लोग पेट दर्द से बेजार हो गए. राज ठाकरे ज्यादा सफल नहीं रहे हैं.

बीजेपी, शिंदे मंडली तो राज के कंधे पर बंदूक रखकर शिवसेना पर हमला करती रही. इससे राज ठाकरे की पार्टी को राजनीतिक तौर पर तो कोई फायदा नहीं हुआ, लेकिन मराठी एकता को भारी नुकसान हुआ. राज ठाकरे के प्रस्ताव पर उद्धव ठाकरे ने सहमति जताई है. उन्होंने मजबूती से कदम आगे बढ़ाते हुए कहा है कि अगर कोई छोटा-मोटा विवाद हो तो भी मैं महाराष्ट्र के हित के लिए मिलकर काम करने को भी तैयार हूं. इस तरह राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच दोस्ती की पठकथा लिखी जा रही है.

राज-उद्धव के साथ आने से बदलेगी सियासत?

उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे आपसी गिले-शिकवे भुलाकर एक साथ आते हैं तो निश्चित रूप से महाराष्ट्र की राजनीति पर असर पड़ेगा. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राज ठाकरे के अगुवाई वाली एमएनएस और उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना (यूबीटी) के बीच आगामी नगर निगम चुनावों, खासतौर पर आर्थिक रूप से समृद्ध बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) चुनावों को ध्यान में रखते हुए आपसी मतभेद खत्म करने की संभावना बन सकती है.

उद्धव और राज ठाकरे के साथ आने से ‘ब्रांड ठाकरे’ के खोए हुए राजनीतिक मुकाम को दोबारा से स्थापित किया जा सकता है, क्योंकि इससे शिवसेना की ‘पुरानी ताकत’ वापस आ सकती है. उद्धव की शिवसेना और राज की मनसे अलग-अलग होकर कमजोर ही हुई हैं. बाल ठाकरे की विरासत की वापसी के लिए भी अहम होगा. अगर दोनों साथ आते हैं, तो ये सिर्फ पॉलिटिकल अलायंस नहीं होगा, बल्कि एक सांकेतिक वापसी भी मानी जाएगी. यानी बाल ठाकरे की असली विरासत फिर से एक हो गई, जो शिंदे की राजनीति के लिए बड़ा झटका होगा.

उद्धव-राज की जोड़ी से लगेगा BJP को झटका?

राज ठाकरे का सियासी तेवर और भाषण शैली युवा वोटर्स को प्रभावित करती है जबकि उद्धव ठाकरे की छवि ‘एक संयमित और परिपक्व’ नेता की तरह है. इस तरह दोनों की एकता शहरी और युवा वोटर्स को एक साथ आकर्षित कर सकता है. मराठी वोट बैंक फिर से एकजुट हो सकता है. हिंदुत्व और मराठी अस्मिता की पुरानी ताकत और तेजी से वापसी हो सकती है. 2019 के बाद से राज ठाकरे बीजेपी के करीब हुए हैं और अगर उद्धव के साथ आते हैं तो बीजेपी के लिए भी बड़ा झटका माना जाएगा.

उद्धव-राज ठाकरे के साथ आने से मुंबई ही नहीं महाराष्ट्र के ठाणे, कल्याण-डोंबिवली, पुणे, नवी मुंबई, नासिक और छत्रपति संभाजीनगर क्षेत्रों में राजनीतिक असर पड़ सकता है. राज ठाकरे के अलग होने और शिंदे की बगावत से उद्धव ठाकरे को सियासी पकड़ कमजोर हुई है. ऐसे में राज ठाकरे के आने से शिंदे की कमी खत्म हो जाएगी और मुंबई-पुणे-ठाणे बेल्ट में उद्धव को दोबारा से ताकत मिल सकती है. बीजेपी को हिंदुत्व और मराठी अस्मिता के मोर्चे पर उद्धव-राज की जोड़ी सीधी टक्कर देती नजर आ सकती है.

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